बसंत जी
बसंत जी।
पैराें में मखमली जूतियां
सिर पर पगड़ी फूलों की
हरियाली रूपी ओढ़ काम्बली
आ गए महंत बसंतबया
बयार चले ठंडी होकर
तन में कंपकंपी बंध जाती
करती मंत्रमुग्ध हवा
सांसों में समाई है जाती
उत्तर से आने वाली हवा
ठंड है अधिक बढ़ाती ।
हरियाली रूपी ओढ़ काम्बली
आ गए महंत बसंत जी।
ऐसी प्यारी ऋतु का
करते हैं स्वागत जीव-जन्तु
भरे उमंग में रहते हैं
थर-थर कांपते हैं तन्तु
रोंए ओर खडे हो जाते
ऐसी ठंड है बढ़ जाती ।
हरियाली रूपी ओढ़ काम्बली
आ गए महंत बसंत जी।
पत्ते लय-सुर-ताल मिलाते
थिरक-थिरक नृत्य हैं करते
भर अंजली बिखेरते पत्ते
लगते हैं मानो हवा में तैरते
हंसी ठिठोली करते हैं जब
हवा तेज है हो जाती ।
हरियाली रूपी ओढ़ काम्बली
आ गए महंत बसंत जी।
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