बसंत गीत
धुंध कोहरे की खुद में सिमटने लगी
शीत बाँहों में उसके पिघलने लगी
ये बसंती सुगंधित पवन क्या चली
प्रीत गुपचुप दिलों में मचलने लगी
आया मधुमास रंगों की ओढ़े चुनर
तय किया उसने ठिठरन का लंबा सफर
बाहें अपनी पसारे हुए हम खड़े
फूल बनकर कली दिल की खिलने लगी
प्रीत गुपचुप दिलों में मचलने लगी
कोकिला की सुरीली लगीं सरगमें
पीली सरसों लुभाने लगी है हमें
गीत भँवरों का सुन भूलने गम लगे
ज़िन्दगी अपनी करवट बदलने लगी
प्रीत गुपचुप दिलों में मचलने लगी
शारदे मात का भी दिवस अवतरण
उनकी कर वंदना पूजते हम चरण
प्रेम का ज्ञान से ये अनूठा मिलन
देख कर लेखनी खुद ही चलने लगी
प्रीत गुपचुप दिलों में मचलने लगी
03-02-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद