बसंत का पुनरागमन
बसंत पर मन के कुछ भाव????
“”खिलें पुष्प हैं गुलशन- गुलशन,
महकें मंजरीं उपवन-उपवन.
फागुन की मदमस्त बयार ,
झूम उठाए सबके तनमन.
मीठी सी बाकी है सिहरन,
बीत गई है शिशिर चुभन.
भेद कुहासा दिखें दिवाकर,
धूप गुनगुनी सहलाती तन.
कूकेँ कोयल डाली डाली,
उड़े तितलियाँ हुलसित मन.
कनक बालियाँ नर्तन करतीं,
आह्लाद भरें कृषकों के मन….-“”
प्रवीण त्रिपाठी
19 फरवरी 2017