*बसंत आया*
उपवन में ऋतुराज समाया
धरा ने नव्य रूप दिखलाया
खग ने मधुर सा गीत गाया
सखी री मोहक बसंत आया।
पीली सरसों सर्वत्र फैली
धवल चाँदनी शशि संग खेली
प्रखर रवि उन्नत उजलाया
सखी री मोहक बसंत आया।
अमरूदों से तरु लद गये
संतरे की है बहार आई
पादप सूखे पात बिखराया
सखी री मोहक बसंत आया।
भौरों ने आज गुँजन सुनाई
पलाश ने बगिया महकाई
अमलतास अंगार दहकाया
सखी री मोहक बसंत आया।
शीतऋतु ने यूँ ली विदाई
नवल भोर उजियारी लाई
खेतों में गेहूँ उग आया
सखी री मोहक बसंत आया।
मादक सुगंधित सी बयार चली
घनघोर निशी बरबस ही ढली
धरा ने यूँ आँचल लहराया
सखी री मोहक बसंत आया।
पुष्पों से यूँ लदी अमराई
सुंदर,सुखद मीठी पुरवाई
रातरानी,दिलकश महकाया
सखी री मोहक बसंत आया।
✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक