बसंती भोर
बसंती भोर
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खिल रहे हैं फूल चारों ओर फिर से,
आ गई महकी बसंती भोर फिर से।
कोंपलें जब फूटती हैं टहनियों पर,
नाच उठते हैं सभी मन मोर फिर से।
शारदे माँ की कृपा का पर्व पावन,
अब न जाए छूट कोई छोर फिर से।
चाहतें मन में मचलने लग पड़ी हैं,
बँध रही हो प्रीति की हो डोर फिर से।
पीतवर्णी पुष्प का मौसम अनूठा,
गुनगुनाता भँवर मन चितचोर फिर से।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य