बसंती गीत
वसंती गीत
// दिनेश एल० “जैहिंद”
नव वात, नव रश्मि, नव मास, नव वातावरण !
नव रंग, नव स्वर, नव उल्लास, नव हर चरण !!
नील अम्बर, हरी धरती, नूतन खुशबू बरसात !
खुश पशु, प्रसन्न पक्षी, उत्साहित समूल गात !!
चहुँदिश मन-भावन फैल गई प्रकृति औकात !
खोलके बाँहें फैलाके अंजुली थाम लो सौगात !!
नव लहर, नव आशा, नव स्वप्न, नव हर वरण —
नव वात, नव रश्मि, नव मास, नव वातावरण !
वसंती बयार, वसंती परिधान, वसंती हर द्वार !
पीत रंग ओढ़े झूम उठी हर नार, हर घर-वार !!
मदहोश हुए कीट-पतंग, मधुमास की खुमार !
गीत फूटे, झूम उठे, नाच पड़े गली-गलियार !!
नव गीत, नव मीत, नव सुमन, नव हर शरण —
नव वात, नव रश्मि, नव मास, नव वातावरण !
पीला गुलाब, पीली सरसों, पीले अमलतास !
पीला गेंदा, पीली सूर्यमुखी, पीले कॉसमास !!
पीले कनेर, पीली लिली, फूले हैं वसंत मास !
पीले पानसी, पीले ट्यूलिप, पीले हैं पलाश !!
नव ईरिस, नव क्रोकस, हर मनुज नव करण —
नव वात, नव रश्मि, नव मास, नव वातावरण !
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दिनेश एल० “जैहिंद”
09. 02. 2019