बलिदान
बलिदान तुम्हारा व्यर्थ न जाने देंगे ,
हम भारत के वाशिन्दे ।
भेड़ियों की खाल से निकाल ही लेंगे ,
देश मे छिपे दरिंदे ।
गर्व करती है आज एक माँ
जिसकी शहादत पर ,
सर न झुकने देंगे हम ,
आजाद देश के परिंदे ।
रग रग में दौड़ रहा है गुस्सा ,
देखकर सैनिकों के टुकड़े ।
शान न मिटने देंगे हम ,
चैन से न बैठेंगे हम ,
जब तक उड़ा न दें कातिलों के परखच्चे ।
दिल रो रहा है आत्मा भी लहुलूहान है ,
ये कैसा धर्म है जहां न चैन ओ ईमान है ।
आओ ओ मेरे देशवासियो ,
आज उठाकर तुम कसम
मिटा देंगे आज से ही फरेब के सारे धंधे ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़