बलिदान (सरदार भगतसिंह )
दे गया अपने प्राण वह, उसका अमर बलिदान है,
आजादी पर कुर्बान हुआ, वह वीर पुत्र महान है ।
1) परतंत्र था यह देश, पर उसके स्वतंत्र विचार थे,
आजादी की थी रट लगी, दिल में लिए अंगार थे,
नम्र था, वह था सहिष्णु, पर काल भी विकराल था,
वह दयावान दयामयी पर युद्ध में महाकाल था,
वह शत्रुओं पर बरसा कि जैसे धनुष से बाण है,
दे गया अपने प्राण वह ………
2) वह अस्त्र था, या शस्त्र था, आयुध का या भंडार था,
मानव के हृदयों से वो जन्मी, एक नवल हुंकार था,
वह धूर्त गोरों पर यू बरसा, जैसे कोई सिंह हो,
पंजाब के उस शेर में, यमराज का प्रतिबिंब हो,
अरे क्रांतिभाव ऐसे भरे, जैसे बदन में प्राण हैं,
दे गया अपने प्राण वह……….
3) वह अंश था, वह खंड था, क्रांति का रूप प्रचंड था,
वह था अड़िग, वह था अटल, स्वाधीनता शिलाखंड था,
उसमें युक्ति थी आजाद की, था शौर्य पृथ्वीराज का,
मात्र उसका एक सपना, था वह भी स्वराज का,
घर छोड़ा, छोड़े थे परिजन, राष्ट्रभक्ति की आन है,
दे गया अपने प्राण वह………..
4) संघर्ष का अवसर हुआ, वह आया परिजन छोड़कर,
स्वाधीनता का उठा प्रश्न, वह आया बंधन तोड़कर,
स्वतंत्रता की राह में, जब भी कोई आगे बढ़ा,
वह बांधकर सर पर कफ़न, ले जाँ हथेली पर खड़ा,
भारत पर था कुर्बान हुआ, भारत की वह संतान है,
दे गया अपने प्राण वह…………
5) आजादी ना देखी मगर, आजाद भारत कर गया,
वह क्रांति की ज्वाला नई, हर एक दिल में भर गया,
अरे तेज, साहस और पराक्रम, की वह प्रतिमा चाहिए,
भारत को अब, भारत के हर घर से भगतसिंह चाहिए,
ऐसी ही कई कुर्बानियों से, बना यह संविधान है,
दे गया अपने प्रणाम वह……….
जय हिन्द