#रुबाइयाँ//बलात्कार-सज़ा-ए-मौत
#बलात्कार-सज़ा-ए-मौत
हृदय व्यथित होता है सुनके , अबला की चीत्कारों को।
अस्मत मोती लूटा जाता , रौंद रोज़ संस्कारों को।
दोषी छूटे देखे हमने , शोषित शोषित होते हैं;
दया धर्म का मोल नहीं है , आँसू हैं अधिकारों को।
कैसे देश महान कहूँ मैं , शैतान खुले फिरते हैं।
राजनीति की ओट लिए हैं , रूहों पर पग धरते हैं।
न्याय नहीं सौदा होता है , आँसू हर लाचारी का;
तम का शासन पर पहरा क्यों ? मनुज-मनुज से डरते हैं।
माँ-बहनों की कदर न करता , तुम अभिशाप कहो उसको।
उसको जीने का क्या हक है ? तुम जब पाप कहो उसको।
खरपतवार निकालोगे तो , सही फ़सल भी पाओगे;
जागो मारो गोली दागो , जन-संताप कहो उसको।
राजा प्रजा हितैषी होता , हरजन को वो सम समझे।
तरु पल्लव फल फूल खिलाए , किसको ज़्यादा कम समझे।
दूध-दूध हो पानी-पानी , हंस मिलावट दूर करे;
सबका ख़ून-ख़ून होता है , राजा नेक कर्म समझे।
#आर.एस.’प्रीतम’
#सर्वाधिकार सुरक्षित रचना