बलराम
द्वापर में जब पाप बड़ा, धरा पर भारी,
आये शेष नाग ,रख रूप मनुष्य धारी,
त्रेता में अनुज बनकर, तुम चले संग राम,
अतुलित बाहु बल, इस युग के हों बलराम,
रोहिणी वसुदेव के सुत, कृष्ण के हो दाऊ,
नंद के घर बालपन बीता, वन में चराई गऊ,
हर मुश्किल में साथ,अनुज कृष्ण के रहे,
जब कंस के अत्याचारों को, संतो ने सहे,
प्रलम्भासुर को खेल खेल में ही हवा में दे मारा,
अतुलित बलशाली धर्म रक्षक, आये मिटाने पाप सारा,
हरि संग हरने पाप,धराधारी हलधर आये,
संग अक्रूर के ,दिखलाने बाहुबल मथुरा आये,
एक ही मुष्टि में, मुष्टिक के प्राण हरे,
कंस के हर योद्धा के, प्राण यूँ ही हरे,
कंस मरण का जब सुना ,जरासंध ने हाल,
धरा से यादव वंश को मिटाने हुआ बेहाल,
चढ़ आया मथुरा,लेकर, तेईस अक्षोहिणी सेना,
सेना थी अपार, देखकर उसको थकते थे नैना,
कृष्ण हुए तत्पर, लेकर हाथ में धनुष सारंग,
हलधर ने हल और गदा लेकर किया सेना को बेरंग,
दोनों वीरो के सम्मुख ,गई सारी सेना ढह,
कृष्ण बलराम की शक्ति को जरासंध न पाया सह,
सत्ताईस दिन तक चला समर भारी,
धरा पर खून से भर गई नदिया सारी,
मगध नरेश को अपने बाहुबल से बलराम ने पछाड़ा,
अपमानित कर भगवान ने उसको बहुत ही लताड़ा,
यादवो पर किया उसने सत्रह बार आक्रमण,
हर बार हारा, बार बार हारा, पर नहीं किया उसका मरण,
शिव का वरदानी यवनराज कालयवन मथुरा आया चढ़,
शिव का रखने मान, भगवान भागे कहलाये रणछोड़,
माधव ले गये उसको, जहाँ सो रहा था नहुष सुत,
अपने बल के घमंड से, दुष्ट कालयवन हुआ मृत,
भीम और दुर्योधन जैसे महा गदाधारी शिष्य तुम्हारे,
कौरव पांडव में न किया कोई भेद ,दोनों समान तुम्हारे,
रेवक की सुता रेवती,भार्या तुम्हारी बनी,
यादवो के सिरमौर,अपनी जिव्हा के धनी,
महाभारत रण से स्वयं को किया मुक्त,
धर्म रक्षार्थ गये तीर्थ ,होकर धर्म युक्त,