बर्षा सावन मे आई है सज-धज कर
बर्षा सावन मे आई है सज-धज कर
मेघ बदली से आये नहा धोकर|
मेघ के बीच दामिनी के खिलते सुमन
ले हिलोरें चले शीत लहरी पवन|
नदी नाले भी भर आये हैं नीर से
अश्रु बहकर नयन बन गये झील से
मन की इच्छा मिटा दो प्रकट होकर
बर्षा सावन मे आई है सज-धज-कर
मेघ बदली से आये नहा धोकर|
हर निशा मे जगूं जुगनुओं की तरह
दिन मे घूमा करूँ मजनुओं की तरह|
मै सुमन रास्तों पर बिछाता रहा
स्वप्न मे भी तुम्हे मै बुलाता रहा |
चली जाना प्रणय बीज तुम बोकर
बर्षा सावन मे आई है सज-धज कर
मेघ बदली से आये नहा धोकर|
रचयिता
रमेश त्रिवेदी
कवि एवं कहानीकार