बर्फ कब गिरेगी
ठंड बढ़ रही है पहाड़ों पर
फिर भी नहीं आ रही है तू
दुआ कर रहे हैं आने का तेरे
जाने किसके इंतजार में है तू।।
चूल्हे भी इंतज़ार में है
बैठेंगे सब लोग मिलकर
चारों तरफ उसके फिर
जब आएगा वो हिमकर।।
बादलों ने घेर लिया आसमान
बीत गए है दिन अब कई
बारिश तो हो रही है आज भी
लेकिन तू आती क्यों नहीं।।
आने को है अब महीना माघ का
है अब भी चाहत बर्फ की
धरती भी अब चाह रही ओढ़ना
सफेद चादर इस बर्फ की।।
जब गिरती है रुई की भांति वो धरा पर
जाने कितनो की उम्मीदें बढ़ जाती है
कंपकपाती है हमें, लेकिन देखकर उसे
कई चेहरों की उमंग बढ़ जाती है।।
जब बिछ जायेगी उनपर सफेद चादर
खूबसूरती बढ़ जाएगी पहाड़ों की
आयेंगे दूर दूर से पर्यटक देखने उसे फिर
ज़िंदगी संवर जाएगी पहाड़ों की।।
न कराओ अब और इंतज़ार धरा को
अब तुम आ भी जाओ
लगाकर सीने से इस प्यासी धरा की प्यास
अब तुम बुझा भी जाओ।।