बर्थडे सेलीब्रेशन
‘टाफियों के पैकेटों को छोड़ कृपा कर इन सभी उपहारों को वापिस ले जायें’ अध्यापिका ने अत्यन्त विनम्रता से उस धनाढ्य पिता से कहा था जो अपने बेटे के जन्म-दिवस पर उसकी कक्षा के सम्पूर्ण विद्यार्थियों के लिए महंगे से महंगे उपहार बांटने आया था।
‘मगर क्यों, मैं तो सिर्फ बांट ही रहा हूं’ पिता बोला।
‘आपने बिल्कुल ठीक कहा, आप बांट ही रहे हैं। आप बांट रहें हैं विद्यार्थियों के बीच के अनूठे रिश्ते के ताने-बाने को, आप बांट रहे हैं उस सोच को जो इनके जीवन को न जाने कितने हिस्सों में बांट देगी। आप बांट रहे हैं अपने अहम को जो बाकी विद्यार्थियों को आहत कर देगा। आप बांट रहे हैं अपने घमण्ड को जो आपके बेटे और कक्षा के अन्य विद्यार्थियों में अमीरी-गरीबी की खाई पैदा कर देगा। आप बांट रहे हैं उस सोच को जो उन विद्यार्थियों को तनावग्रस्त कर देगी जब उनका जन्म दिन आयेगा और वे अपने मां-बाप से स्कूल में क्या लेकर जायें इस बात पर बहस करने वाले बन जायेंगे। आप बांट रहे हैं एक ऐसी प्रथा को जिसमें अनेक बच्चे अपना जन्म दिवस ही भुला देना चाहेंगे। महोदय, आप मेरी बात को अन्यथा न लें। मैं एक शिक्षिका हूं और मुझे इस देश की उस भावी पीढ़ी को तैयार करना है जिनमें आपस में कोई दरार न हो, कोई खाई न हो…. शिक्षिका कहती जा रही थी और पिता अपने उस फैसले पर गर्व कर रहे थे जिसके अन्तर्गत उन्होंने अपने बेटे को इस स्कूल में पढ़ने भेजा था।
शिक्षिका को हाथ जोड़ते हुए उन्होंने अपने नौकर को इशारा किया जो पल भर में वह कीमती उपहार लेकर वापिस चला गया। ‘आज मैं आपकी उस कक्षा का विद्यार्थी हो गया हूं जो मैं जीवन में कभी गया ही नहीं, देवी, मेरी भूल क्षमा करें’ कहते हुए पिता का मन हलका हो गया था।