“बरस जा”
आज कुछ बादल से लगे हैं दूर आसमा पे, शायद मिलेगी राहत हमें इस भरी तपन से !
तेरी इसी आस मैं बैठा हूँ एक मुद्दत लेकर, तू जरा अपनी ताकत मुझ पर कुर्बान कर दे !
ए दूर के बादल कभी बरस भी जा, ऊब गया हूँ मैं इस भरी तपन से !
देख जरा हाल क्या हो गया इंसान का यहां, रहमत अपनी हमपर भी कुर्बान कर दे !
दया तो तुझे आती ही होगी मुझ पर शायद, गलती है क्या मेरी मुझे ये बता भी दे !
मैं सहमा हूँ बहका सा हूँ बस तेरी खातिर, तू बस अपनी सूरत कभी दिखा भी दे !
सुख गये खेत और खलिहान मेरे तू है बस वजह , सूरत तो छोड़ कभी मूरत अपनी दिखा भी दे !
जानें भी न जाने कितनी कुर्बान हुई तेरी खातिर यहां, तू क्या है चाहता अब खुलकर जरा बता भी दे !
रो- रो कर थक गए हम इस कदर , जरा बौछारें अपनी अब दिखा भी दे !
……….बृज