बरसो रे बरसो, बरसो बादल
(शेर)- गाँव-शहर, हर बस्ती- घर घर, निकली यह आवाज़।
भर दो सागर- नंदियाँ बादल, तुम बरसकर आज।।
नींद नहीं है आँखों में, तरसे तुमको यह जग सारा।
तुम बिन सुखी यह धरती, और अधूरे सबके काज।।
———————————————————–
बरसो रे बरसो, बरसो बादल, उमड़- घुमड़कर तुम।
प्यास मिटा दो इस धरती की, खूब बरसकर तुम।।
बरसो रे बरसो, बरसो बादल———————।।
प्यासा है यह जग सारा, तुमको पुकारे यह जग सारा।
क्यों रूठे हो ऐसे हमसे, दूर करो तुम गुस्सा तुम्हारा।।
सबको हंसा दो तुम बरसकर, झूम- झूमकर तुम।
बरसो रे बरसो, बरसो बादल——————-।।
तुम्हारे स्वागत में खड़े हैं, सजधज कर नर- नारी।
आकर तुम महका दो यह, बगियाँ-फसल हमारी।।
सबके मन को हर्षा दो, ताल- तलैया भरकर तुम।
बरसो रे बरसो, बरसो बादल——————।।
कोयल गाये पेड़ों पर, और नाचे टोली जवानों की।
आवो आवो मेघा रानी, आये आवाज़ दीवानों की।।
डम,डम, डम ढोल बाजे, बरसो बादल जमकर तुम।
बरसो रे बरसो, बरसो बादल——————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)