बरसात
ओ प्रियतमा
ऋतु बरसात आई
मनभावन फुहार लाई
प्यार ने ली अंगड़ाई
आन मिलो मन समाई
ओ प्रियतमा
पुकारें तुम्हे सजन
राह तक रहे नयन
सपने संजोये रहे
अपने मे खोये मगन
ओ प्रियतमा
जब छाई घनघोर घटा
मन लरजे देख छटा
होश उड़े नींद गई
कई खंडो मे मन बटा
ओ प्रियतम
अंगने मे भरा जल
देख हो जाऊं विकल
कैसे आऊं तुम तक
राह नही है सरल
ओ प्रियतम
करो कुछ उपाय इसका
मिलना हो आसान हमका
सुनत नाहि हमरी बात
करत सब अपने मनका
स्वरचित
मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल
प्रकाशित