बरसात
बरसात
क्या करूँ मैं इस बरसात निंगोड़ी का,
अपनी तो ऐसी बैरन हुई, जी जान से बैर निभावे है !
जब बरसे है झूम झूम,
तृप्त होता सृष्टि का रोम रोम,
एक हम ही दुश्मन इसके,
जब पड़े बूँद गात पर, जिया में आग लगावे हैं !
तड़पे है तन बदन ऐसे,
बिन पानी मछली जैसे,
सारे जग से प्रीत करे, कम्बखत हमसे अच्छा बैर निभावें है !!
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डी. के. निवातिया ____!!
2)
बरसात
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मनभावन सावन वही, वही बरसात है।
दिल में उमंग भी वही, वही जज्बात है।
मेंढक की टर्र-टर्र, सोंधी माटी की खुशबु,
नाचते मयूर, अब कहां मिलती वो सौगात है।।
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डी के निवातिया
3)
ठीक नहीं
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बात दिल की दिल में छुपाना ठीक नहीं !
फ़ासले अपनों के बीच बनाना ठीक नहीं !
जिंदगी में रक्खो अपने काम से काम यारो !
तांक- झाँक किसी के आशियाना ठीक नहीं !!
रुत के संग मौसम का बदलना अच्छा है !
बिन मौसम बरसात का आना ठीक नहीं !!
सावन के मौसम में सुलगते अरमान हो !
इस हाल में यारा परदेश जाना ठीक नहीं !!
जिसने कदर न की कभी दिल-ऐ-जज़्बात की !
बेदर्दी हमसफ़र लिए आंसू बहाना ठीक नहीं !!
ये अश्क नहीं कतरे है निशानी मेरे जिगर के,
इन बेशकीमती मोतियों को लुटाना ठीक नहीं !!
बे-वज़ह, बे-वक्त, बेतुकी बाते अक्सर करते है !
ऐसे लोगो की सौबत में “धर्म” आना ठीक नहीं !!
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डी के निवातिया