बरसात
पहली बरसात और इन, बूँदों की फ़रमाहिशें।
कर रही कुछ ख्वाहिशें, हम सबसे ये बारिशें।।
ये बादलों की साज़िशें, ये मस्तियां बरसात की।
रह गयी अधूरी चाहते, दिल मे उठे जज्बात की।।
उन्हें देख नजरो में चमकी, बिजली चकाचौंध सी।
दिल धड़कना भूल गर्जन, करने लगा घनघोर सी।।
बूँद पेशानी से उभर, शिथिल की हरकत गात की।
रह गयी अधूरी ख्वाहिशें, दिल मे उठे जज्बात की।।
भींगे गेशुओ को जब वो, बेपरवाही में झटक गयी।
अनजाने में वह छीटें, मुझ पर बन सुधा बरस गयी।।
लेकिन तुषारापात हो गयी, कमबख्त कायनात की।
रह गयी अधूरी ख्वाहिशें, दिल मे उठे जज्बात की।।
वह पहली बरसात की बूंदा बूंदी, पल में सम्भल गयी।
रेल उसकी विपरीत दिशा में, स्टेशन से निकल गयी।।
देखता रहा खिड़की से राहें, पिंजरे में पक्षी नजात की।
रह गयी अधूरी ख्वाहिशें, दिल मे उठे जज्बात की।।
आज भी अक्सर ये बारिश, मुझको बहोत लुभाती है।
भूली बिसरी यादें रह रह, जब तब याद दिलाती है।।
उस अनामिका से क्षणिक, आधे अधूरे मुलाकात की।
रह गयी अधूरी ख्वाहिशें, दिल मे उठे जज्बात की।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २२/०५/२०२२)