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27 May 2021 · 1 min read

बरसात

बूँद _बूँद जुटती है,
धरती से उठती है|
सूरज की गर्मी से,
मेघों में छुपती है|
गर्मी जब बढ़ती है,
शाख _शाख झरती है|
सूखते है कण्ठ तब,
घास भी सूखी है|
होती बरसात है,
मिट्टी से खुशबू भी
सोधीं सी उठती है|
मोर करे नृत्य है,
नदियाँ भी बहती है|
किसान भी झूम उठे,
खेतों में हरियाली है|
धन्य बरसात है और
धन्य हर बूँद है,
प्रकृति के सौन्दर्य का
अनूठा ये रूप है|

6 Likes · 6 Comments · 478 Views
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