बरसात-बटोही बादल
इन्द्रधनुष की खूँटी पर टंगा
सतरंगी सपनों का बादल
उड़ता नभ द्रुत पंख लगाए
तितली सा अम्लान सजल
भटके बटोही सा नील गगन
इच्छाओं का जलद धवल
मृदु स्वप्न के अंकुर फूटते
जब बरसे धरा जल विमल
नहला जाता विषाद वेदना
धुल जाता कोहरे का कंबल
चपला सा चमकता सपना
आशाएँ जीवन का संबल
रेखा ड्रोलिया
कोलकाता