बरसात-सब धुल जाए
घनघोर बरसात
कड़कती बिजली
गरजते बादल
टपकती बूँदे
सब धो गयी
धुल गए
पेड़ पोधे
फ़ूल पत्ते
आम लटकते
पक्षी बहुतेरे
सूनी सड़कें
गलियाँ चोराहे
छत दीवारें
झूलती मिनारें
सूखते कपड़े
उदास चेहरे
मटमैले बच्चे
दाग़ पक्के
सब कुछ धुल गया
काश मन का मैल भी
यूँ ही धुल जाता
सृष्टि संग मन जीवन
खिल खिल जाता
रेखा ड्रोलिया
कोलकाता