बरसात
बरसात
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बरस जाए जो बादल से, उसे बरसात क्या समझू
जो आंसू ना समझा मेरे , उसके हालात क्या समझू
बिजली जब कोंधती है गगन में, पीड़ा दिल में होती है
बाहर की खबर नहीं, भीतर बड़ी बरसात होती है
प्यार कि विदायगी पर जो अश्क से, दामन भर गया मेरा
ऐसे मौसमी परिंदे के, जज़्बात क्या समझू
बरस जाए जो बादल से, उसे बरसात क्या समझू
मोहब्बत में झूठी कसमें ,चलन सा हो गया जैसे
हर फूल पर उड़ा भवरा ,बेवफा हो गया कैसे
पतंगा जला पर दिए से , कोई वास्ता ना था
ऐसे जल के मरने को, बस खाख़ मै समझू
बरस जाए जो बादल से, उसे बरसात क्या समझू
हो साथ तेरा, सर पर कड़ी धूप हों चाहे
हाथ में हाथ हो तेरा, पथ नागिन सा डसे चाहे
ठिकाना हो तेरे दिल में,ना महलों का बसेरा हो
जग बैरी बने क्या परवाह ,जब साथ तेरा हो
ये कोरी कल्पना ,ख़्वाब मेरा है, आंखो से गिरा झरना तेरी सौगात मै समझू
बरस आए जो आंखो से, उसे बरसात बस समझू
तू ख़्वाब था, है, और ख़्वाब के हालात क्या समझू
बरस आए जो आंखो से, उसे बरसात बस समझू
प्रज्ञा गोयल (कॉपी राईट)