बरसात
धरती को उसके घनघोर तपन से मुक्त करती बरसात।
खेतों के उबड़ खाबड़ ढेलों को संयुक्त करती बरसात।
देती है जीवन पपीहा को एक बूंद से,
न जाने उस बून्द में क्या प्रयुक्त करती है बरसात।
-सिद्धार्थ पांडेय
धरती को उसके घनघोर तपन से मुक्त करती बरसात।
खेतों के उबड़ खाबड़ ढेलों को संयुक्त करती बरसात।
देती है जीवन पपीहा को एक बूंद से,
न जाने उस बून्द में क्या प्रयुक्त करती है बरसात।
-सिद्धार्थ पांडेय