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17 May 2021 · 1 min read

बरसात,

बादल उमड़ते बुलाते हैं किसको,
फ़िज़ा की हवाएं लुभाती है सबको,
दिलों में सभी के हुयी हलचलें हैं,
कैसे रिझाती है बरसात मुझको,
रिमझिम है बारिश जहां तो भीगे,
अंकुर निकलते ज़मीं फोड़ सीधे,
सब कोई चर्चा इसी पर है करता,
मुश्किल जो दिन थे वो आज बीते,
छपकी मचाते वे बदन जो नहाते,
बड़ी दूर तक मन के आँचल भिगाते,
परिन्दें घरौंदें से बाहर जब निकलें
कितनी हंसी से चमकीं हैं शक्लें,
मौसम निराले मछलियों से सारे,
पकड़ते हैं बच्चे और बनाते हैं चारे,
कुछ हैं बेबस खुद घर को सम्हाले,
टपकते हैं छप्पर दिल को हैं मारे,
ये बरसात तुम अब ऐसे तो आना,
रिमझिम बारिश से तन को भिगाना,
कर गया पागल मन मेरा दीवाना,
धरा से आसमां का अधर को लगाना,

4 Likes · 11 Comments · 585 Views
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