बरसात
दिल मेरा जब अधीर से हो जाते हैं,
बरसते बादल दहलीज़ पर आते हैं,
मैं सन्नाटे से निकलता हूँ आंगन में,
ज़ख्म किस क़दर ख़त्म हो जाते हैं,
घटा दिल में है चहक मन मयूर उठे,
भरी बरसात में दादुर जब बोल उठे,
प्यासी धरती सज कर आबाद हुयी,
दीवाना मंज़र तन में रसें घोल उठे,
बरसात का बादल मस्त अंगड़ाई है,
कोई कैसे कहे खुशबू कुम्हलाई है,
ऐसे मौसम में भला कहाँ चैन मिले,
बूंद चूमती ज़मीं जन्नत जो पायी है,
इंसान तो इंसान परिन्दें बेकाबू हुये,
ये बरसात तुम आयी तो जादू हुये,
उमस का मौसम उम्मीदें तोड़ गया,
तेरे आने से फ़िज़ाओं में खुशबू हुये,