बरसात- भाग-3
आज तेरी पहलु में ही
तुझे लिखने बैठा हूँ
जो समझे हर कोई,तेरी मौजुदिगी को
कुछ ऐसे तुझे जितने बैठा हूँ
सबसे पहले तेरे आने पर
तरुवर आहत सुनाता है,
शाखो की पत्तिया झर झर गाता है।
तेरे संग ही आने वाली
समीर गालो को थपकिया लगाता है
हल्की हल्की बरसती फूहाड़े
माँ का आंचल सर पर ओढाता है
तेरे संग अपनी मस्ती थी
पुरा बचपन ही याद आता है
तेरे यरीयो के गर्जन तर्पण से
अधीर मन घबराता है
ऐसे में कोई भूले कैसे,उस मयुर को
जो मतवाला नृतक पंख फैलाता है,
तू जादू ही है कुछ ऐसा
हर कोई तुझमें खो जाता है।
तेरी निर्मल जल धार
तन को न बस भिगोये है
बौछारों की रफतार्
आत्मा को सरोवर में डुबोये है।
न जाने कितनी देर से
हम तेरे पास ही सोये है।
हम तेरे पास ही सोये है।
विक्रम कुमार सोनी