बरसात (बारिश)
मिलने को जमीं से आसमां
आती है बारिश बनकर
दे जाती है सौगात बहुत सी
वो जमीं से मिलकर
है दोस्ताना इनका पुराना
जब भी मिलते है
इन्हें देखता है सारा जमाना
बनके बूंदे वो जमीं पे बरस जाती है
बहुत प्यार से वो जमीं से लिपट जाती है
बनकर खुशबू वो सुकून की
फ़ैल जाती है सब दिशाओं में
है दोस्ताना इनका पुराना
जब भी मिलते है
इन्हें देखता है सारा जमाना
लहराते खेत हो जाती सुंदर जमीं है
कुछ ऐसी खाशियत होती बारिश की है
भीग जाये जो तन बारिश में
मन में उमंग सी आ जाती है
है दोस्ताना इनका पुराना
जब भी मिलते है
इन्हें देखता है सारा जमाना
लेखक धनराज खत्री