बरसात की झड़ी ।
उमड़-घुमड़ के आये मेघ,
बरसात की झड़ी लगाने।
सावन और मेघा,
प्रेम से तन को भिगाने,
मन को तृप्त करने,
बरसो रे मेघा ,बरसो,
ये नदियां तुझको तरसे,
सुनने को गड़गड़ाहट की आवाज,
खेत खलिहानों में बिखेरे,
बूँदे जल की गगन से,
अपनापन छलके नयन में,
सावन की वो पहली मुलाकात,
धरा की तड़प प्यास में जल के,
भीगा दो बारिशों से ,
बंदिशे सब मिटा दो ,
फिर से बीज अंकुरित कर दे,
सुखी मिट्टी में नमी ला दे।
उमड़-घुमड़ के आये मेघ,
बरसात की झड़ी लगाने।।
मेघा मेरे प्रीत को,
आवाज दे कर बुला दे,
कोयल की कूक से ,
आहट तेरे बरसने की,
बरसो से अकाल पड़ा इस खंड में,
तेरा मेरा प्यार धरा से गगन में,
रिमझिम रिमझिम से पायल की झंकार,
काली घटा सी छाई है केश के जाल,
बस यूँ ही बरस लो,
मन मयूर भी नाचे बार बार,
ओ मेघा रे मेघा,
निःस्वार्थ है तेरा प्यार,
बारिश की तेरी बूँदे ,
अब भरेंगी नदियां- ताल,
होगा जीवन सबका खुशहाल ।।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा,
हमीरपुर ।