बरसात की छतरी
रंग-बिरंगी छतरी आई,
छोटी-बड़ी लगे सुंदर-सी ।
रिमझिम-रिमझिम बरसात में,
बूंँदों से बचूँ आज मैं ।
टिप-टिप पानी टपक रहा है,
घन केश के छांँव में ।
भीग-भीग कर नहीं जाऊंँगा,
पढ़ने इस बरसात में ।
मांँ मुझको भी छतरी ला दो,
मस्त सावन की बौछार में ।
गोल-गोल घुमा कर इसको,
खुद को इसके नीचे छुप कर ।
जाऊंँगा अब बाहर मैं,
खूब करूँ पानी में छप-छप ।
ठंडी हवा से बचाऊँ इसको,
बरसात में खूब भिगाऊँ इसको ।
मांँ तुझको भी संग ले जाऊँ अब,
बरसात का एहसास दिलाऊँ तब ।
झूम-झूम कर मेघा बरसे,
रहेंगे छतरी के नीचे तन के ।
#..बुद्ध प्रकाश; मौदहा (हमीरपुर)