बरसात की इक रात
वह रात अभी भी याद है
जब कारी बदरिया छाई थी ।
मैं अपने पिया संग ,
लॉन्ग ड्राइव पर गई थी ।
रात के आठ बजे थे,
रास्ते में गाड़ी हमारी ,
जलेबी के ठेले पर रुकी थी ।
रस भरी जलेबी मुँह में,
डालते ही घुल गयी थी ।
इसके बाद हम आगे बढ़ गए,
रात के 10 बज गए ,
जाकर एक ढाबे पर रुक गए ,
बारिश अभी भी ज़ोरदार थी ,
हवा के संग कप कपाई चढ़ी थी ,
गरमा-गरम चाय की चुस्की ,
लेकर शरीर मे कुछ गरमाहट आई ,
बारिश अभी तक नहीं रुकी थी …..
सोचा थोड़ा और घूम ले ,
लेकिन रात बहुत घनी थी ।
लगभग रात के 11 बजे थे ,
खाली सड़क थी फिर भी,
गाड़ी बिलकुल धीरे चल रही थी
मूसलाधार बारिश की झड़ी में,
सामने कुछ भी नहीं दिखा रहा था ,
लेकिन इसका भी अपना मज़ा था ।
अब घड़ी में बजे थे 12 ,
यह सोचकर दिल घबराया ,
सास -ससुर का घर था भई,
मैं भला क्यों न घबराऊँ,
भीगे भीगे जब घर पहुँचे,
ससुर जी ने दरवाज़ा खोला,
बोले बेटा बहुत देर की ,
क्या बारिश इतनी अच्छी लगी……
इतनी अच्छी लगी ….
इतनी अच्छी लगी …..