बरसात का स्वागत
कैसे करूँ स्वागत तुम्हारा?
बताओ इस बार ,तुम बरसात ।
कोरोना के कहर से,
व्यथित मनुष्य का गात ।
कितनो के अपने चले गए,
कितने धन बल से छले गए?
कितनो के जीवन मे लिख दी,
क्रूर काल ने भयावह रात ।
रिमझिम रिमझिम तू बरसे,
बाहर निकलने को हम तरसे।
सूने गली , बाजार, संकुल,
प्राणों का पंछी व्याकुल ।
घरों में कैद है बचपन ,
बूढ़ी आखों में कैद स्वप्न ।
कागज की नौका खोई-खोई,
एकाकी जिंदगी रोई-रोई।
जीवन रेती खिसक रही है,
सारी सृष्टि सिसक रही है ।
हे मृत्युंजय अब दया करो,
कोरोना को तुम दफा करो।
बारिश की बूंदे सरगम गाएं,
प्रकृति का आंचल लहराए।
कोयल,पपीहा, केकी चहके,
फिरसे मन मे सावन दहके।
जग उठे सोए जज्बात,
प्रभु ऐसी कर दो बरसात ।
तब बाहें फैलाकर करे स्वागत,
इस प्रकृति का पात-पात।
-प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव
अलवर (राजस्थान )