बरसात का सपना
कल मैंने एक सपना देखा, मेघाच्छादित अंबर देखा
कृष्ण घनेरे मेघ पुंज से दिनकर को आछन्न सा देखा
रजतप्रभा सी आलोकित, तड़ितवृंद को गर्जित देखा
शीतल मंद बयार सहित, तरुवर को भी दोलित देखा
चित्ताकर्षक ऋतु में मैंने पुष्प गुच्छ को भ्रमरित देखा
गगन में आकर्षक सतरंगी इंद्रधनुष के वलय को देखा
सुहावने उपवन के भीतर शिशुटोली अठखेलित देखा
बारिश की हल्की रिमझिम में धरती को मुस्काते देखा
लुभावने सपने में मैंने मनमोहन अपना प्रियतम देखा
बरसात के ऐसे मौसम में धरती का प्यार पनपते देखा
निद्रा का आगोश तोड़कर द्वार से बाहर आकर देखा
सपने के परिदृश्य तुल्य ही वर्तमान का मौसम देखा
डॉ. सुकृति घोष
ग्वालियर, मध्यप्रदेश