बरसात का वो दिन
पानी –पानी चारों ओर ,डूब गए अब सारे छोर |
पहाड़ों से मैदानों तक बादल मचा रहे हाहाकार ||
बाढ़ ,बारिश का कहर ,पानी बन गया है जहर |
जाने कितने टूटे सपने ,और कितने छूटे अपने ||
प्रकृति का ये कैसा खेल ,पीछे रह गए सब जिनसे था मेल |
ये बाढ़ का पानी ,कर रहा अपनी मनमानी ||
पानी –पानी चारों ओर ,डूब गए अब सारे छोर |
कितनी हो गई अजब तबाही, अब सोचो कैसे होगी भरपाई ||
हर तरफ पानी मचा रहा हाहाकार ||
घर डूबे ,मंदिर डूबे और डूब गई हैं सारी सड़कें |
अब सीने पर सैलाब हैं ,और नाव पर जिंदगी सवार है |
जल मग्न हो गया है सब ,पता नहीं ये प्रलय रुकेगा कब ||
जाने कितने टूटकर बिखर गए ,घर बार जिनके छूट गए |
पानी –पानी चारों ओर ,डूब गए अब सारे छोर |
सोनी गुप्ता