*”बरसात का मौसम”*
“बरसात का मौसम”
बरसात का आगमन हो रहा ,
शीतल जल ठंडी पुरवईया मंद बह चली है।
वक्त के थपेड़ो ने महामारी की संकटो में ,
फिर मौसम के बदलाव ने कुछ दस्तक दी है।
स्वछंद उन्मुक्त गगन अनगिनत तारों के संग में,
काली घनघोर घटायें छाई हुई है।
वो बरसात में भींगने का जमाना बदल गया ,
विपदाओं ने अपना डेरा जमाया हुआ है।
उजड़ा हुआ चमन जो खुशबू बिखरे रहता ,
बरसात की अमृत बूंदो से संवरने लगी है।
उड़ते हुए पँछी दर बदर भटकते हुए ,
पता नहीं कहाँ कैसे नीड़ बना ठौर ठिकाना ढूढ़ रहे हैं।
कोयल मोर पपीहे की मधुर स्वर को तरसते ,
बरसात के मौसम में सुर संगीत गूंज उठते हैं।
ताल तलैया नदियाँ झरने सागर पानी की बूंदो की ,
अभिलाषा पूरी करने की चाहत लिए हुए हैं।
सूना सा आँगन सूनी सड़के सूनी गलियाँ ,
रिश्तों में बढ़ती दूरियां हर मौसम अनजान सा लगता है।
कोहराम मचा हुआ चारों दिशाओं में ,
मौत का तांडव आंखों से आँसू की बरसात हो रही है।
हे प्रभु अब इस संकट कष्ट से उबार दो ,
काश …..ऐसी बरसात कर दो ,
अंतर्मन भींग जाए महामारी का अंत हो हम सभी परेशान हुए हैं।
शशिकला व्यास