बरसात कभी ख़ुशी कभी गम
ये बरसात भी अजीब है
कभी बूंदा बांदी ,कभी छींटें ,कभी मूसलाधार
ईश्वर तनिक परेशां -तो छलकते हैं आंसू बूंदाबांदी रूप में
ईश्वर कुछ ज्यादा परेशां- तो छलकते हैं आंसू छींटों के रूप में
ईश्वर का ह्रदय द्रवित -तो वेग से बहते हैं आंसू बरसात के रूप में
बरसात ख़ुशी भी है और गम भी
बरसात सुख भी है और दुःख भी
बरसात जायज भी है और नाजायज भी
बरसात आलिंगन भी है और बिछोह भी
बरसात राहत भी है और त्रासदी भी
फुटपाथ पर रहने वाले के लिए बरसात त्रासदी
सड़क वाले व्यापारी के लिए बरसात गम
पक्के मकान वालों के लिए बरसात सावन
पैसे वालों के लिए बरसात जाम का बहाना
प्रशासन के लिए बरसात पोल खुलने की वजह
कभी किसान की अरदास की अल्लाह मेघ दे -पानी दे ..
कभी उसी किसान की शिकायत क्यों ,इस समय क्यों बरसात
कभी मानव की पुकार बारिश हो -बारिश हो
कभी चहुँ ओर चीत्कार त्राहि माम -त्राहि माम
बरसात भी आखिर क्या करे
बरसात बाहर ही नहीं अंदर भी होती है
अंदर की बरसात बाहर की बरसात से दर्दनाक होती है
बाहर की बरसात तो थम जाती है
पर अंदरूनी बरसात अंदर ही अंदर तोड़ देती है
पर अंदर और बाहर की सफाई के लिए बरसात भी जरुरी है
(स्वरचित एवं मौलिक)
? विकास शर्मा “शिवाया”?
जयपुर-राजस्थान