बरसाती बयार
तपती वसुधा को शीतल करने
चली बयार बरसाती बयार।
संग लाई अपने बूंदों की लड़ियाँ
और माटी की सौंधी सुगन्ध
कृषको की आँखों में चमक
और होठों पर मधुर मुस्कान
अवनी हृदय को हरा-भरा करने
चली बयार बरसाती बयार।
पिक कण्ठ भरने मधुर राग
दादुर टर् टर् की रटन आवाज
सब में उत्साह और नई उमंग
प्रफुल्लित होकर झूम उठे
प्यासे पपीहे की अब प्यास बुझाने
चली बयार बरसाती बयार।
गाजे-बाजे संग लाई अपने
मेघों के झुंड के झुंड अपार
तड़ित की गर्जन और चमक
कोमल तन की ठण्डी सिहर
प्रियतमा आलंगन की आस जगाने
चली बयार बरसाती बयार।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’