बरसाती कुण्डलिया नवमी
(1.)
मौसम यह बरसात का, पृथ्वी पर उपकार
हरियाली पर्यावरण, ऋतुओं का उपहार
ऋतुओं का उपहार, मास ये सावन-भादो
होते पूरे साल, माह श्रेष्ठतम यही दो
महावीर कविराय, ख़ुशी बारिश में औसम
सबकी ख़ातिर ख़ास ,बरसात का यह मौसम
(2.)
तन-मन फिर खिलने लगे, आयी है बरसात
अक्सर खुशियाँ साथ में, लायी है बरसात
लायी है बरसात, मौज मस्ती में झूमे
काग़ज़ की इक नाव, संग ले बालक घूमे
महावीर कविराय, हुए मोहित काले घन
रिमझिम गिरती बून्द, भीगते जाएँ तन-मन
(3.)
वर्षा ही इस विश्व को, देती जीवनदान
लौटे फिर बरसात से, कोटि-कोटि में प्रान
कोटि-कोटि में प्रान, सभी के मन हर्षाये
हरियाली के राग, सुनाते वन मुस्काये
महावीर कविराय, सदा ही जन-जन हर्षा
जब जब वर्षा गान, सुनाती आई वर्षा
(4.)
सावन के बदरा घिरे, सखी बिछावे नैन
रूप सलोना देखकर, साजन हैं बेचैन
साजन हैं बेचैन, भीग न जाये सजनी
ढलती जाये साँझ, बढे हरेक पल रजनी
महावीर कविराय, होश गुम हैं साजन के
मधुर मिलन के बीच, घिरे बदरा सावन के
(5.)
मधुरिम मधुर फुहार है, बरखा की बौछार
शीतलता चारो तरफ़, मन पे चढे ख़ुमार
मन पे चढे ख़ुमार, हृदय को भाते प्रेमी
गिरी सभी दीवार, झूमते गाते प्रेमी
महावीर कविराय, पड़ीं बून्दें ज्यों रिमझिम
मनभाये बौछार, फुहार लगे त्यों मधुरिम
(6.)
छह ऋतु बारह मास हैं, ग्रीष्म, शरद, बरसात
स्वच्छ रहे पर्यावरण, सुबह-शाम, दिन-रात
सुबह-शाम, दिन-रात, न कोई करे प्रदूषण
वसुंधरा अनमोल, मिला सुन्दर आभूषण
जिसमें हो आनंद, सुधा समान है वह ऋतु
महावीर कविराय, मिले ऐसी अब छह ऋतु
(7.)
नदिया में जीवन बहे, जल से सकल जहान
मोती बने न जल बिना, जीवन रहे न धान
जीवन रहे न धान, रहीमदास बोले थे
अच्छी है यह बात, भेद सच्चा खोले थे
महावीर कविराय, न कचरा कर दरिया में
जल की कीमत जान, बहे जीवन नदिया में
(8.)
होंठों पर है रागनी, मन गाये मल्हार
बरसे यूँ बरसों बरस, मधुरिम-मधुर-फुहार
मधुरिम-मधुर-फुहार, प्रीत के राग-सुनाती
बहते पानी संग, गीत नदिया भी गाती
महावीर कविराय, ताल बंधी सांसों पर
जीवन के सुर सात, गुनगुनाते होंठों पर
(9)
कूके कोकिल बाग़ में, नाचे सम्मुख मोर
मनोहरी पर्यावरण, आज बना चितचोर
आज बना चितचोर, पवन शीतल मनभावन
वर्षाऋतु में मित्र, स्वर्ग-सा लगता जीवन
महावीर कविराय, युगल प्रेमी मन बहके
भली लगे बरसात, ह्रदय कोकिल बन कूके
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