बरसने लगे जो कभी ये बादल I
बरसने लगे जो कभी ये बादल,
और तड़पने लगे ये चंचल मन ।
ख्वाहिशों की गठरी को तुम अपनी खोल देना।
और भीगा देना खुद यू आसमां के तले,
जैसे मिला हो कोई बरसों बाद इन्हें ।
फिर बहा के अपनी झंझटों को इसमें तुम ,
धो लेना खुद यू तुम ।
जैसे लगा हो कोई दाग कब से ।
बरसने लगे जो कभी ये बादल,
और तड़पने लगे ये चंचल मन ।
पहन कर तुम फिर एक नया रूप ।
बुनना सादगी से सपने हजार ।
कुछ को रखना सब्र के पिटारे में ,
बाकी को करना आजाद ।
जैसे कोई बंद पंछी, उड़ता बरसो बाद ।
बरसने लगे जो कभी ये बादल,
और तड़पने लगे ये चंचल मन ।