बरगद का पेड़
गाँव मेरे में था एक सुन्दर पेड़
कहते थे उसे बरगद का पेड़
बरगद की थी सघनी छाँव
बैठे रहते सभी पसार पाँव
बच्चा हो या फिर नर नारी
बैठै रहते ढाह के चारपाई
मोटे तनों टहनियों का जाल
चोड़े पत्तों का सघन फैलाव
पनघट पास पोखर किनारे
खड़ा हुआ था चबुतरे सहारे
गाँव का था वो खबरी केन्द्र
सूचनाओं का भी सूचना केन्द्र
खबर कहीं की कहीं घटी हो
कहीँ लड़ाई दुर्घटना घटी हो
पुराने समय का वटसएप था
फेसबुक टवीटर इंस्टाग्राम था
वार्तालाप में थी हँसी ठिठोली
आसपास खबर की चर्चा होती
पनघट पर गोरियाँ पानी भरती
मनचलों की नजरें नजर सेकती
सजा रहता खूब जार बाजार
चहुंओर चहुंमुखी खिली बहार
गाय बैल सभी पशु डाँगर ढोर
बंधे रहते सभी खूंटियों संग डोर
बिल्ली कुत्ता कटड़ा और बछड़ा
बरगदी ठंडी घनी छाँव में रहता
सभी बैठते संग साथ साथ में
करते सारे सभी काम हाथ से
चुगली निन्दा और मान बड़ाई
छेड़छाड़ संग होती कभी लडाई
बच्चे रहते खेल खेलों में मस्ती
युवक युवती की थी पींघें चढती
आते जाते राहगीर बैठ भी जाते
इधर उधर की खबरे खूब सुनाते
समय बदला दौर माहोल बदला
बरगद कट गया नीम कट गया
लोगों का चाल चलन बदल गया
तौर तरीके रंग ढंग बदल गया
गाँव मेरे में था एक सुन्दर पेड़
कहते थे उसे बरगद का पेड़
सुखविंद्र सिंह मनसीरत