बन गई पाठशाला
ज़िंदगी हमारी बन गई पाठशाला
सद्भावो की मानती बहती बयार |
सादगी सारी हो जाती पेय पाला
नवल कदम में आते होता सुधार|
माँ की गोद ने जो सबक सिखाया
जीवन में नया पाठ सुर निखार |
हँसने बोलने सदा भरता एहसास
औषधि सा बनता सा उपचार |
जीवन चक्र बन ये चलता रहता
वक़्त बढ़े साथ बदलता बेशुमार |
हुनर गुरु जब चलता विधालय
नैनों से प्रेम कटु स्वर विस्तार |
पाठशाला पढ़ाई से जाना आभार
दौड़ भरी जग ना माना लाचार |
शिक्षा का मंदिर पावन पाठशाला
मिले ज्ञान की ज्योत से रोज़गार |
मौलिक और अप्रकाशित|
स्वरचित -रेखा मोहन