बन के बादल,बरसते रहे —आर के रस्तोगी
बन के बादल,जमीं पर बरसते रहे |
एक बूँद के लिये,हम तरसते रहे ||
आस्तिनो के साये में पाला जिन्हें |
साँप बन कर हमे,वो डसते रहे ||
बारिस के मौसम में,हम फिसलते रहे |
उनका हाथ पकड़ने के लिये तरसते रहे ||
बारिस हुई,पर सब जगह कीचड़ थी |
फिसलन इतनी थी,पैर फिसलते रहे ||
सुहावना मौसम था,इन्तजार करते रहे |
बस यूहीं सारी रात करवटे बदलते रहे ||
बरसे भी बादल,कहीं और चले गये |
रात भर हम यूहीं सिसकते रहे ||
बादल गरज रहे बिजली चमक रही थी |
पर रस्तोगी उनकी याद में लिखते रहे ||
आर के रस्तोगी