बन्धन
छीन न लो तुम किसी के,अधर सजीमुस्कान
पता नहीं आ कोन कब, दे दे अपनी जान
तीर चला कर नजर का ,किया प्रिये ने घाव
वजूद अपना भुला कर , खेला है जो दांव
बना यार जो हमारा , लेकर मेरा चैन
इधर उधर जो दिखे नहि , सदा बसे जो नैन
ऐसे साधन रचे प्रभु , लगा रहे जो पार
मीत सनेही साथ हो , झनके मन के तार
भटक भटक द्वार पर , करे ईश की खोज
मिले चैन तब पथिक को,पाये प्रभु की मौज
भटके ऋषि मुनि खोज में, पा लेने को चाह
पतंगे जैसे जले जो , मिले नहीं जब थाह
बूँद बूँद से भरे घट , ऐसी बन्धन रीत
प्रीत फले नहि बंधन बिन, सुन ले मेरे मीत