बन्धन भावनाओ का
ना नयन मिले ना हाथ मिले, जाने कैसे जज्बात मिले।
ना हाव मिले ना भाव मिले, जाने कैसे स्वभाव मिले।।
वो गठबंधन तो तेरा था, मुझको क्यो फिर बांध लिया।
बिन बन्धन की इस डोरी मे, मुझको कैसे बांध लिया।।
यूँ सौंप मुझे अपने जीवन को, इतने निश्चित रहते हो।
भय नही मुझसे तुझको, चैन की नींद तुम सोते हो।।
जैसे तुमने खुद को सौंपा है, ऐसे भी कोई नही होता।
एक अनजाने को भगवन कहना, आसान नही होता।।
=================================
“ललकार भारद्वाज”