###बन्धन थे वह टूट गए हैं###
बन्धन थे वह टूट गए हैं,
निष्ठुरता भी कहाँ ठहरती,
संकल्पों की उठी अग्नि में,
बुद्धि अपना हवन है करती,
क्षुद्र संकटों से न घबराकर,
निज कौशल की नाव बनाएँ,
गहरी सरिता को तर जाएँ,
यदि अङ्गद सा पाँव जमाएँ।।1।।
सौ आते हैं सौ जाते हैं,
भला बुरा सब भरमाते हैं,
जिस बुद्धि में शुष्क पंक है,
पंकज कैसे खिलपाते हैं,
अवसादों की इति को लेकर,
सही दिशा में ध्यान बनाएँ,
गहरी सरिता को तर जाएँ,
यदि अङ्गद सा पाँव जमाएँ।।2।।
निबिड़ वनों में ताप घुसे न,
समदर्शी जीवन अपना लें,
बीत गए कल की न सोचें,
वर्तमान में ज्ञान लगा लें,
खोद गर्त सब बुरे-भले को,
दफ़नाकर आगे बढ़ जाएँ,
गहरी सरिता को तर जाएँ,
यदि अङ्गद सा पाँव जमाएँ।।3।।
जान उन्हीं दीपों में होती,
अन्धड़ में जो देते चिन्गारी,
वह क्या अपना जीवन जीता है,
जो पाले ईर्ष्या की बीमारी,
अन्य जनों की प्रगति को लेकर,
सुरलय का एक साज़ सजाएँ,
गहरी सरिता को तर जाएँ,
यदि अङ्गद सा पाँव जमाएँ।।4।।
©अभिषेक पाराशर ●●●●●●●●