*बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में विद्यार्थी-काल की उपलब्धियाँ*
#B_H_U_Ravi_Prakash
संस्मरण
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में विद्यार्थी-काल की उपलब्धियाँ
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
1️⃣पहली उपलब्धि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की ओर से अंतर्विश्वविद्यालय हिंदी वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिए मेरा चयन होना रहा । एक वर्ष के लिए यह चयन होता था । इस अवधि में जितनी भी अंतर्विश्वविद्यालय वाद-विवाद प्रतियोगिताएं भारत भर में होतीं, मुझे उन में जाने का अवसर मिलता । संयोगवश अवसर केवल एक बार आया । तदनुसार मैंने जिला भागलपुर ,बिहार में आयोजित अंतर्विश्वविद्यालय वाद-विवाद प्रतियोगिता में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया ।
2️⃣ दूसरी महत्वपूर्ण उपलब्धि बार काउंसिल ऑफ इंडिया ट्रस्ट द्वारा आयोजित “ऑल इंडिया मूट कोर्ट कंपटीशन” में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की ओर से मेरा चयन होना रहा । अतः मुझे 1982 में पुणे(महाराष्ट्र) में तथा 1983 में बनारस में आयोजित ऑल इंडिया मूट कोर्ट कंपटीशन में अपने विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। यह एक प्रकार से सजीव अदालत का चित्र होता था ,जिसमें प्रतिभागियों को मुकदमे का अध्ययन करके अपनी दलीलें प्रस्तुत करनी होती थीं।
3️⃣ तीसरा महत्वपूर्ण कार्य विश्वविद्यालय परिसर में डॉक्टर भगवान दास छात्रावास के कमरा संख्या 42 में जब मैंने रहना शुरू किया ,तब मेरा ध्यान छात्रावास के खाली पड़े हुए “अध्ययन कक्ष” की ओर गया । मैंने वार्डन महोदय से अध्ययन-कक्ष में अंग्रेजी तथा हिंदी के अखबार और प्रतियोगिताओं से संबंधित पत्रिकाओं के अध्ययन की व्यवस्था करने की अनुमति मांगी । उन्होंने सहर्ष मुझे अनुमति प्रदान कर दी। मैंने “काशी छात्र परिषद” नाम से संगठन बनाया। स्वयं संयोजक रहा । अन्य उत्साही सहपाठी हमारे कार्यक्रम के साथ जुड़ गए । मैं पत्र-पत्रिकाएं लेकर साथियों सहित रीडिंग रूम में प्रतिदिन एक घंटा बैठता था। स्वयं भी उन्हें पढ़ता रहता था तथा अन्य छात्रों को भी यह सामग्री पढ़ने के लिए उपलब्ध हो जाती थी । हमने न सिर्फ रीडिंग रूम को सफलतापूर्वक चलाया अपितु छात्रावास में विचार-गोष्ठी भी प्रति सप्ताह करना आरंभ कर दिया । इसमें हम प्रायः अपने वार्डन महोदय को बुलाते थे । अनेक बार विधि संकाय के रीडर डॉ. सी. एम. जरीवाला आदि प्राध्यापकगण भी हमारे आग्रह पर आए। इन सब से एक प्रकार का अनुशासन तथा गरिमा विचार-गोष्ठी में कायम हो जाती थी ।
4️⃣ चौथी महत्वपूर्ण उपलब्धि 25 दिसंबर 1982 को महामना मदन मोहन मालवीय जयंती के अवसर पर मेरी पहली पुस्तक “ट्रस्टीशिप विचार” का प्रकाशन हुआ । उस समय मैं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में ही पढ़ता था । इस पुस्तक की रचना का आरंभ इस विचार के साथ हुआ कि ट्रस्टीशिप की भावना की प्रासंगिकता और उपयोगिता कहां तक है ? मैंने अखिल भारतीय विख्यात महानुभावों से उनके विचार मांगे थे और उन्होंने मुझे 42 ,डॉक्टर भगवान दास छात्रावास ,बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पते पर पत्र भेजकर प्रदान कर भी दिए थे । इन महानुभावों में सर्व श्री मोरारजी देसाई ,नानाजी देशमुख ,जैनेंद्र कुमार आदि शामिल थे । बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में मुझे विराट गाँधी साहित्य के अध्ययन का अवसर मिला । वहाँ गाँधीजी के समय के महत्वपूर्ण समाचार-पत्रों की मूल प्रतियों को पढ़ने का अवसर मिला । इन सब पत्रों के संग्रह तथा ट्रस्टीशिप विषयक गहन अध्ययन के आधार पर “ट्रस्टीशिप विचार” पुस्तक लिखी गई। प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन जी ने पुस्तक प्राप्त होने के बाद मुझे पोस्टकार्ड पर सराहना-पत्र भेजा और यह जीवन की एक अमूल्य निधि बन गई ।
इस तरह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में विद्यार्थी जीवन का कालखंड रचनात्मक गतिविधियों से ओतप्रोत रहा ।
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451