बनाओ स्वयं अपनी पहचान…
बनाओ स्वयं अपनी पहचान —
जग में जीना नहीं आसान
आते पग-पग पर इम्तहान
बुद्धि-ज्ञान में एक अकेला
सकल गोचर जग में इंसान
चूमेगी बुलंदी कदम तुम्हारे
करते रहो जो लक्ष्य संधान
तुमसा कौन हितैषी तुम्हारा
मन की सुनो लगाकर कान
इधर-उधर न ताको- झाँको
बनाओ खुद अपनी पहचान
करो हर काम स्वयं अपना
यूँ ही न लो सबका एहसान
लालच कितने तुम्हें लुभाएँ
डिग ना पाए मगर ईमान
बुरा न चाहो कभी किसी का
बाँटो सबको मृदुल मुस्कान
भावी अनुगमन करे तुम्हारा
छोड़ो पथ पर अमिट निशान
हीनता न कोई मन में लाओ
करो नित निजता का उत्थान
औरों से ना आँको खुद को
सबका अपना अलग विधान
मंजिल चूमेगी कदम तुम्हारे
जागो, उठो, चलो बीड़ा तान
तुमसा न कोई दूजा जग में
तुम ही बस अपना उपमान
नकल नहीं असल बनो तुम
गढ़ो खुद ही अपने प्रतिमान
‘सीमा’ का लघ-ु बंधन काट
उड़ो असीम उन्मुक्त उड़ान
– डॉ. सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )