बधाइयां शुभकामनाएं
व्यंग्य आलेख
बधाइयां शुभकामनाएं
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हमारी भारतीय संस्कृति में बधाइयां और शुभकामना देने का सिलसिला कब हिस्सा बन गया ये शोध का विषय है क्योंकि मुझे नहीं पता है। शायद आपको हो तो बताइए और यदि नहीं पता तो बिना शर्मिंदा हुए सगर्व अपनी अज्ञानता को मेरी तरह सार्वजनिक तौर पर स्वीकार कीजिए और मेरे साथ साथ औरों की भी भरपूर बधाइयां पाने का अवसर पैदा कीजिए।
चलिए इस बात को पीछे छोड़िए और ये सोचिए कि आखिर बेधड़क उछलती कूदती बधाइयाओं और शुभकामनाओं की असल उपलब्धि का राज क्या है।
तो आइए हम गीता पर हाथ रखकर झूठ न बोलने की औपचारिकता निभाते हैं और रेवड़ी की तरह फुदक फुदक कर बधाइयाओं और शुभकामनाओं की तह तक पहुंच इसकी सच्चाई को बेनकाब करते हैं।
हमारे ही नहीं दुनिया भर में दिवसों की बाढ़ सी गई है
रोज ही कोई न कोई दिवस मनाया ही जाता है । आज ये दिवस,कल ये, परसों ये दिवस। ये दिवस मनाने की महज औपचारिकता भर होते हैं , दिवसों की सार्थकता महज अपवाद की पूर्ति भले ही करते हों, लेकिन औपचारिक शुभकामनाएं बधाइयां देने वालों के लिए ये अवसर बेहद जरुरी होते हैं। जिन दिवसों के बारे में हमें ज्ञान भी नहीं होता, उसपर भी हम खूब उछल उछल कर बधाइयां देते हैं। सोशल मीडिया तो इस मामले में हमारे लिए मुफ्त का खाद बन गया है। इसके अलावा जन्मदिन, भिन्न भिन्न तरह के सालगिरह, व्यक्तिगत सफलता, उपलब्धियां नववर्ष, स्वतंत्र दिवस, गणतंत्र दिवस, होली दीवाली, नवरात्रि,मकर संक्रांति, ईद, बकरीद, रमजान, क्रिसमस डे , रक्षा बंधन, भैया दूज, छठपर्व,बरही आदि आदि विभिन्न अवसरों ने बधाइयां शुभकामनाओं देने की आदत हमारी दैनिंदनी का हिस्सा जैसी हो गई है।
अब तो इस कड़ी में शादी से पहले सगाई, महिला संगीत, मेंहदी, हल्दी, बच्चे का प्रथम स्कूल, नौकरी का पहला दिन आदि आदि जाने कितने अवसर मिलने लगे हैं बधाइयां शुभकामनाएं देने के।
जबकि सोशल मीडिया पर हम कितने ही लोगों को अच्छे से तो क्या जानो भी नहीं फिर भी औपचारिकता पूरी करने में पीछे नहीं रहते। वास्तविकता तो यह है कि जिन्हें हम अपना कहते मानते हैं उन्हें भी महज औपचारिकता पूरी करने की खातिर बधाइयां शुभकामनाएं देते हैं। जिनसे मिलने की सालों साल जहमत नहीं उठाते,जिसके सुखदुख की परवाह नहीं करते, फोन पर भी हाल चाल नहीं पूछ पाते या पूछना और जानना भी नहीं चाहते, जिनके दरवाजे पर किसी की मृत्यु तक में ज्नहीं पहुंचते, उन्हें सोशल मीडिया पर बधाइयों का ऐसा बड़ा टोकरा पकड़ाते हैं, जैसे हमसे बड़ा हमदर्द उनका दुनिया में नहीं है।
जबकि ब्रह्मांडीय सच तो यह है कि हम अधिसंख्य बधाइयां शुभकामनाएं देते हुए यही सोचते हैं कि तू मेरे या जिए,पास हो या, बीमारी से मर या दुर्घटना से, तू खून रहे न रहे, तेरा परिवार सकुशल रहे या उस पर पहाड़ गिरे मुझसे क्या मतलब था मैं क्यों परेशान होऊं। फिर भी जो दिखता है वही बिकता है वाले फार्मूले पर चलकर महज औपचारिकता निभाते हैं।
और तो और बधाइयां शुभकामनाएं देने/ निभाने की अंधी दौड़ में शामिल हम ये भी भाव रखते हुए भी कि हे प्रभु, अल्लाह, गाडफादर, इसका बेटा नालायक हो, बेटी की शादी न हो, बच्चों को नौकरी न मिले, बीबी लड़ाका मिले, पति नशेड़ी, जुआरी, बेरोजगार हो,ये बीमार परेशान ही रहे, ये कभी सूकून से न रह सके साथ ही बधाइयां ही बधाइयां देकर सामने वाले को बेवकूफ ही बनाते हैं।
सच्चाई यह है कि एक प्रतिशत लोग ही दिल से बधाइयां और शुभकामनाएं देते हैं।आपके सुख से प्रसन्न और आपके दुख से परेशान होते हैं । वरना बाकी तो महज औपचारिकता वाले शुभचिंतक ही हैं, जो सिर्फ दिखावा ही करते हैं।
बधाइयां और शुभकामनाएं की औपचारिकता निभाते हुए हम इतने बेपरवाह हो गये हैं कि बहुत बार तो किसी की मृत्यु पर भी बधाइयां उछालकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं।
बातें कुछ ज्यादा हो गईं, मगर ये आपकी कौन सी औपचारिक सभ्यता है कि अभी तक आपने मुझे किसी भी तरह की बधाइयां या शुभकामनाएं नहीं दी। चलिए कम से कम अब तो दे ही दीजिए, दिल से न सही औपचारिकता ही निभा दीजिए। या न ही दीजिए रहने दीजिए, आपका तो उधार रहेगा मान लेंगे पर हम उधार नहीं करेंगे और घोषणा करते हैं कि आप सब मेरी शुभकामना बधाई स्वीकार कीजिए यकीन रखिए ये दिल से बिल्कुल नहीं है। महज औपचारिकता की चाशनी में लिपटी भर है,सहेज कर रखिए, मौके पर मुझे ही थोड़ी मलाई मार कर वापस कर दीजिएगा।
आप खुश रहो नाखुश रहो मेरी बला से,पर बधाई तो ले ही लीजिए। नहीं लेंगे तो भी चलेगा, लोगों की कमी है क्या जो इतना इतरा रहे हो लोग लाइन में खड़े हैं मेरी शुभकामना बधाई देने के लिए, अग्रिम बुकिंग चल रही है, आर्डर ही पूरा नहीं हो रहा है और आप को दे रहा हूं तो नखरे दिखा रहे हो, खूब दिखाओ कौन सा हम दिल से दे रहे हैं हम भी तो महज औपचारिकता निभा रहे हैं,समय के साथ आधुनिक बन रहे हैं। बेतरतीब बिखरी बधाइयां शुभकामनाएं उठा उठा कर बांटरहे हैं,कौन सा अपनी पूंजी खर्च कर रहे हैं। सिर्फ लिस्ट में अपना नाम ही तो लिखा रहे हैं।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित