बदौलत
लघुकथा
बदौलत
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ये दुनिया भी कितनी अजीब है मैं जब सोचता हूं तो मन में विकृतियां जन्म लेने लगती हैं।
ऐसा ही कुछ विचार था मेरे दोस्त राजीव का।
पिछले दिनों मिला तो बड़ा उदास था। मैंने कारण पूछा तो जैसे फट पड़ा क्या बताऊं यार – ये दुनिया बड़ी स्वार्थी है। लोग अपना फायदा जब तक देखते हैं,तब तक ही उसको याद रखते हैं,जिनकी बदौलत उनकी खुद की पहचान बनी है। उसके बाद तो बस बुराइयां ही करते हैं, खुद को बड़ा तीसमार खां समझने लगते हैं।
मैंने उसे समझाया, देख! इसमें अजीब कुछ भी नहीं है, नेकी कर दरिया में डाल वाला सिद्धांत अपना। खुश रहेगा। लेकिन एक बात याद रख, उनमें भी कुछ ऐसे होते हैं, जो प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष उसका गुणगान करते ही रहते हैं, जिनकी बदौलत वे सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं या चढ़ सके हैं।
और एक बात! ऐसे ही लोग उन लोगों को अमर कर देते हैं, जिनकी बदौलत वे आगे बढ़े हैं।
मगर……।
यार! तू भी न। इस अगर मगर को छोड़ जरा दिमाग पर जोर डालकर देख कि क्या तुझे अपने शिष्यों में सभी ऐसे हैं, जो आगे जाकर तुझे नजर अंदाज कर रहे हैं।
नहीं। बहुत से ऐसे हैं जो मुझे भगवान समझते हैं। पूजा करते हैं। राजीव ने गर्व से कहा
फिर क्यों परेशान हैं। मंदिर में भी सभी लोग भगवान की पूजा ही नहीं करने जाते और जो भगवान पर भरोसा करते हैं, भगवान भी उनकी प्रार्थना को जरुर सुनता है।
अरे वाह! तू तो दार्शनिक हो गया। मेरी सारी उलझनों का समाधान हो गया।
अब मैं चलता हूं, मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे।
राजीव ने मुझसे हाथ मिलाया और अपने प्रशिक्षण केन्द्र की ओर बढ़ गया।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश