बदल दे संसार
बदल दे संसार
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कोई सामने आए,
और झट से ये बताए,
कहाँ पर खो गए,
संस्कृति और संस्कार,
चारो तरफ फैला हैं,
घोर अंधेरा काला बाजार,
लूटती है रोज अस्मत,
होते हैं बलात्कार,
गिरगिट से रंग बदलते,
बदले-बदले अचार-व्यवहार,
कोई जन नहीं है सुरक्षित,
शिकारी करते जनसंहार,
कौन किसको है समझाए,
सभी हैं लुटेरे और गुनाहगार,
ये कैसी चली है आंधी,
अत्याचारी करते रहते अत्याचार,
गुमनामियों में गम हो गया,
मानवीय मूल्य और सभ्याचार,
मनसीरत बनकर कोई तो आए,
बदल दे पूर्णतः जनमानस और संसार।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)