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1 Jul 2023 · 1 min read

बदल गई मेरी फितरत

बदल गई मेरी फितरत अब, मुझमें अब न बुराई है
घनीभूत होती जाती अब, जीवन में अच्छाई है

मेरी काया हुई कुंदनी, रोग न मुझे सताते अब
भाॅंति-भाॅंति के सद्विचार ही, मुझको बेहद भाते अब

पढ़ता हूॅं मैं आर्ष ग्रन्थ अब, सन्तों के प्रवचन सुनता
प्रवचन का निहितार्थ समझकर, उसको मन-ही-मन गुनता

माया मेरे निकट न आती, रावण मुझे न छू पाता
परमात्मा की अनुकम्पा से, मेरा यश बढ़ता जाता

मैं प्रभु का अतीव आभारी, उनका वंदन करता हूॅं
करके उनकी याद पदकमल, पर सविनय शिर धरता हूॅं

महेश चन्द्र त्रिपाठी
R 115 खुशवक्तराय नगर
फतेहपुर, उत्तर प्रदेश
पिनकोड – 212601
ईमेल – mctripathi62@gmail.com

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